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मीडिया की खोज-खबर: प्रभात खबर में समीक्षा

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मीडिया का मानचित्र: एक बातचीत

प्रशांत प्रत्युष, मीडिया शोधार्थी एवँ पत्रकार, के साथ एक बातचीत: अरविंद दास ने अपनी नई किताब “ मीडिया का मानचित्र ” में मौजूदा मीडिया जिसमें प्रिंट-आनलाइन-टीवी-सिनेमा(मैथली सिनेमा) शामिल है , का आलोचनात्मक विवेचन और विश्लेषण किया है।  बतौर मीडियाकर्मी और कुछ अखबारों में स्तंभकार के कालम लिखते हुए वह जितने संवेदनशील मीडियाकर्मी है उतने ही गंभीर मीडिया रिसर्चर. इसलिए किताबों में उनके सवाल जो उन्होंने उठाए है वो तथ्यों के साथ आते है.उनके साथ उनकी ही किताब पर एक छोटी सी बातचीत  https://www.youtube.com/watch?v=iuDeB9zBQrE

विद्यार्थियों-शोधार्थियों के लिए जरूरी किताब

प्रभात रंजन, चर्चित लेखक एवँ जानकी पुल के मॉडरेटर: अरविंद दास मुझे कॉफ़ी पिलाने का वादा कई साल से भले पूरा न कर पाए हों लेकिन किताब लिखने के मामले में वे ज़रूर नियमित हैं। उनकी पिछली किताब ‘ बेख़ुदी में खोया शहर: एक पत्रकार के नोट्स ’ की स्मृति अभी धुंधली भी नहीं पड़ी थी कि उनकी नई किताब हाथ में आ गई- ‘ मीडिया का मानचित्र ’ । सबसे पहली बात कि यह किताब अधिक फ़ोकस्ड है। ख़ासकर प्रिंट मीडिया को लेकर। किताब का पहला ही लेख 21 वीं सदी में हिंदी के अख़बार ’ में उन्होंने यह विस्तार से बताया है कि जिस दौर में उन्नत समझे जाने वाले समाजों में प्रिंट मीडिया के प्रसार में गिरावट आ रही है उसी दौर में हिंदी अख़बारों की प्रसार संख्या तेज़ी से बढ़ रही है। इसके कारणों को उन्होंने बहुत अच्छी तरह सोदाहरण समझाया है। इस लम्बे लेख में वे यह बताना भी नहीं भूले हैं हिंदी अख़बार सत्ता की मुखर आलोचना से बचते हैं , यथास्थिति के पोषक हैं।  इसी तरह ’ हिंदी पत्रकारिता की भाषा का विकास ’ लेख मीडिया के सभी विद्यार्थियों-शोधार्थियों को पढ़ना चाहिए। इस लेख में उन्होंने उदाहरण के साथ उन्नीसवीं सदी के पूर्वार्ध में प्रक

विचलन और स्वरूप का लेखा-जोखा

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( अनुज्ञा बुक्स से आई पत्रकार डॉक्टर अरविंद दास की किताब ' मीडिया का मानचित्र ' की समीक्षा कर रहे हैं वरिष्ठ पत्रकार अशोक झा. यह किताब भारतीय मीडिया के विभिन्न पहलुओं की पड़ताल करती है. ) पत्रकारिता कितना दिलचस्प है इसे कोई पत्रकार ही समझ सकता है. दूसरे लोग किनारे पर खड़े होकर पानी कितना गहरा है इसका अंदाज़ा भर लगा सकते हैं. और यह भी कि हर पत्रकार के पास एक पत्रकार के रूप में अपने पेशे (पत्रकारिता) और न्यूज़रूम के बारे में कहने को बहुत कुछ होता. ये बातें काफ़ी दिलचस्प होती हैं क्योंकि यह उनके पेशे और जिस खबर को वे लिखते-संवारते हैं उसके साथ इसका बहुत ही निकट का संबंध होता है. खबरों के साथ होने वाला ' खेल ' और उस खेल को लेकर न्यूज़ रूम में होने वाली बहस काफ़ी दिलचस्प होती है. इस विषय पर किसी भी पोथी के हाथों-हाथ बिक जाने के बारे में किसी शक की कोई गुंजाइश नहीं है. पर हम एक ऐसी पुस्तक का ज़िक्र कर रहे हैं जिसे लिखा है हिंदी में मीडिया पर शोधपरक पुस्तक लिखने वाले अरविंद दास ने. ‘ मीडिया का मानचित्र ’ मीडिया पर उनकी दूसरी पुस्तक है. पत्रकारिता में पीएचडी की डिग्री रखने

मीडिया का मानचित्र का लोकार्पण

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प्रोफेसर वीर भारत तलवार, आलोचक के साथ लेखक किताब का लोकार्पण 27 मार्च को  हिंदी के वरिष्ठ आलोचक प्रोफेसर वीर भारत तलवार ने गाजियाबाद स्थित अपने आवास पर एक बेहद आत्मीय माहौल में  मीडिया का मानचित्र का लोकार्पण किया.  किताब के लेखक अरविंद दास ने यह किताब उन्हें  ही समर्पित किया है.  जेएनयू में प्रोफेसर तलवार अरविंद दास के शिक्षक और एमफिल-पीएचडी के सुपरवाइजर रहे हैं.   

मीडिया का मानचित्र

पत्रकार अरविंद दास हिंदी में मीडिया के सरोकारों को समझने और उसपर लिखने वाले लेखक हैं. ‘अनुज्ञा बुक्स’ से उनकी इसी विषय पर नयी पुस्तक आ रही है- ‘मीडिया का मानचित्र’. पूंजी, मीडिया और सत्ता का गठजोड़ प्रजातंत्र  के लिए कितना घातक हो सकता है इसे कहने की जरूरत नहीं है. डिजिटल मीडिया के आगमन से इसका (दुष्)प्रभाव अचूक हो गया है और यह अति को प्राप्त हो गयी है. जनता के प्रति जवाबदेही और सत्य के प्रति निष्ठा जैसे पत्रकारिता के मूल्य बिसरा दिए गये हैं.  आज मीडिया सत्ता से स्वार्थ साधने में समर्थ लोगों की सीढ़ी बन गयी है. इस किताब की भूमिका से संपादित अंश यहाँ प्रकाशित किये जा रहें हैं. उम्मीद है किताब पसंद की जायेगी.  (समालोचन: https://samalochan.blogspot.com/2021/03/blog-post_17.html)   मीडिया का मानचित्र                                                           अरविंद दास स माज के विकास की अवस्था के साथ ही संचार की तकनीकी और माध्यम का भी विकास होता रहा है.  औपनिवेशिक  शासन के दौरान हरकारे ,  डाक ,  भाट ,  रिसाले आदि खबरों ,  सूचनाओं के प्रसार का माध्यम होते थे. फिर अखबारों की दुनिया से गुजरते हु